मगध का उत्कर्ष | Rise of Magadh
मगध का उत्कर्ष
आज हम मगध का उत्कर्ष में सहायक दो अन्य वंश शिशुनाग वंश और नंद वंश के बारे में जानेंगे । हम जानेंगे कि कैसे शिशुनाग वंश और नंद वंश ने मगध को एक विशाल राजधानी बनाने में योगदान दिया।
शिशुनाग वंश
440 ईसापूर्व उदयन की मृत्यु हो जाने के बाद कुछ समय तक उसके उत्तराधिकारी ने मगध पर राज्य किया। उदयन के उत्तराधिकारीयों में कोई भी ऐसा उच्च अधिकारी नहीं था जो बहुत योग्य हो और जो मगध जैसे साम्राज्य को चला सके अतः जल्द ही 412 ईसापूर्व में हर्यक वंश समाप्त हो गया और एक नए वंश शिशुनाग वंश का उदय हुआ। हर्यक वंश का आखिरी शासक नागदासक था जिसको पाटलिपुत्र के मंत्रियों और अमात्यो ने सिहासन से उतारकर शिशुनाग को राजा बनाया और उसने ही शिशुनाग वंश की स्थापना की।
शिशुनाग वंश में मुख्य रूप से दो राजा हुए यह दो राजा इस प्रकार है।
- शिशुनाग
- अशोक (कालाशोक या काकवर्ण)
इस वर्ष में एक अन्य शासक पंचनक था जो कि इस वर्ष का अंतिम शासक था।
शिशुनाग
हर्यक वंश को समाप्त कर शिशुनाग ने ही शिशुनाग वंश की स्थापना की थी। शिशुनाग 412 ईसापूर्व में मगध के सिंहासन पर आसीन हुआ था। इतिहास में उसे नंदी वर्धन के नाम से जाना जाता है वह इस नाम से बहुत प्रसिद्ध है।
वह बहुत ही वीर और महत्वकांक्षी राजा था उसने मगध साम्राज्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सर्वप्रथम उसने अवंती राज्य पर आक्रमण किया और उसे जीतकर मगध साम्राज्य में मिला लिया। उसने अवंती के प्रद्योत वंश की शक्ति को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया इसके बाद उसने कौशल राज्य को जीता।
उसने कौशल पर आक्रमण कर उसे भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसने अपने पुत्र को काशी का शासक नियुक्त किया और उसे वहां राज्य करने के लिए दे दिया।
शिशुनाग ने पश्चिमी भाग को छोड़कर संपूर्ण उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया तथा पाटलिपुत्र के स्थान पर राजगृह को अपनी राजधानी बनाई। सिंहली बृत्तांतो के अनुसार शेषनाग ने लगभग 18 वर्ष तक शासन किया।
अशोक (कालाशोक या काकवर्ण)
शिशुनाग के पश्चात मगध साम्राज्य पर उसका पुत्र अशोक विराजमान हुआ। वह इतिहास में कालाशोक या काकवर्ण के नाम से प्रसिद्ध है। उसने मगध साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कई छोटे राज्य पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिलाया। उसने राजगृह के स्थान पर पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाई।
इसके शासनकाल के दसवीं वर्ष में 383 ईसा पूर्व में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई। इस संगीति का आयोजन वैशाली के कुसुमपुरी विहार में किया गया था। बाढ़ द्वारा रचित हर्षचरित में कथा है कि अशोक यानी कालाशोक या काकवर्ण की मृत्यु अपने राज्य से बाहर भ्रमण के दौरान हत्या द्वारा हुई थी।
विभिन्न ग्रंथों के अनुसार उसने 28 वर्ष तक शासन किया था। अशोक के 10 पुत्र थे उसकी मृत्यु के बाद उनके 10 पुत्रों ने सम्मिलित रूप से महापद्मानंद की सुरक्षा में 22 वर्ष तक शासन किया। इस वंश का अंतिम शासक पंचनक था जिसकी उनके संरक्षक महापद्मानंद ने हत्या कर दी और नंद वंश की स्थापना की।
नंद वंश
शिशुनाग वंश के अंतिम शासक पंचनक की हत्या करके महापद्मा नंद नंद वंश की नींव डाली। नंद वंश में मुख्य रूप से दो शासक हुए यह शासक इस प्रकार है।
- महापद्मानंद
- घनानंद
महापद्मानंद
नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था किसने 344 ईसा पूर्व में किस वंश की स्थापना की थी। पुराणों के अनुसार महापद्मा नंद एक शूद्र स्त्री का बेटा था कथा जैन ग्रंथ के अनुसार उसके पिता नाई थे।
कहा जाता है कि महापद्मा नंद देखने में बहुत ही सुंदर और अच्छा था उसकी सुंदरता पर शिशुनाग वंश की रानी मोहित हो गई और जिसका फायदा उठाकर महापद्मानंद ने राजा की हत्या कर दी और शिशुनाग वंश की स्थापना की।
महापद्मा नंद बहुत ही शक्तिशाली और महत्वकांक्षी राजा था उसके पास बहुत सारी संपत्ति और सेना थी। पुराणों के अनुसार नंदराज के पास 10 पदम् सेना थी जिसके कारण ही उसका नाम महापद्म पड़ा और नंद वंश की स्थापना करने के कारण उसका पूरा नाम महापद्मानंद पड़ा।
पुराणों में महापद्मा नंद को क्षत्रिय पृथ्वी का राजा, भार्गव (परशुराम) के समान कहा गया है। कलयुग राज वृतांत के अनुसार महापद्मा नंद ने पंचाल, काशी, कलिंग, गुरु, मैथिल, शूरसेन आदि जैसे महत्वपूर्ण राजवंशों को समाप्त कर दिया था।
इतिहासकार डॉ राय चौधरी के अनुसार उसने दक्षिणापन का कुछ भाग को भी नंद साम्राज्य में मिला लिया था। पुराणों के अनुसार महापद्मानंद ने लगभग 28 वर्ष शासन किया था।
घनानंद
पुराणों के अनुसार महापद्मा नंद के 9 पुत्र थे। इन पुत्रों में से एक का नाम सुमाल्य था। बौद्ध ग्रंथ में इसे ही घनानंद कहा गया है। यह महापद्मानंद का 9वा पुत्र था। महापद्मानंद की हत्या घनानंद ने ही कर दी और मगध जैसे विशाल साम्राज्य पर आसीन हुआ। इसने लगभग 12 वर्ष तक मगध पर शासन किया।
अपने शासन काल के 12वें वंश घनानंद का युद्ध चंद्रगुप्त मौर्य के साथ हुआ। इस युद्ध में चंद्रगुप्त मौर्य विजय हुआ और घनानंद की हार हुई। इस हार के बाद ही नंद वंश समाप्त हो गया और एक नए वंश मौर्य वंश का उदय हुआ।
तो आज हमने शिशुनाग वंश और नंद वंश के बारे में जाना है अब आगे हम मौर्या साम्राज्य के बारे में जानेंगे तब तक आप इसे पढ़ कर अपना ज्ञान बढ़ाते रहे। हम आपके लिए ऐसे ही study से related articles लाते रहेंगे।
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