Fundamental Rights | मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
आज हम Polity के एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय के बारे में पढ़ने वाले हैं जिसका नाम है मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)। मौलिक अधिकार हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक होता है अगर यह हमें नहीं प्राप्त होते हैं तो हम जीवन नहीं जी सकते हैं जिस तरह जीवन के लिए खान और पानी आवश्यक होते हैं उसी तरह मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) भी व्यक्ति के विकास और उसके जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक माने जाते हैं।
Definition of Fundamental Right (मौलिक अधिकार की परिभाषा)
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) के अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के जीवन के लिए आवश्यक और अनिवार्य होते हैं और जो संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं।
व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य द्वारा भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता और यदि राज्य इसी प्रकार से अधिकारों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करता है तो न्यायालय द्वारा उसे अवैध घोषित कर दिया जाता है और उन पर कड़ी कार्रवाई की जाती है। मौलिक अधिकार की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इन्हें राज्य में बनाए जाने वाले कानूनों से भी सर्वोच्च माना जाता है।
Fundamental Rights mentioned in the constitution (संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार)
भारतीय संविधान के भाग 3 अनुच्छेद 12 से 35 तक भारत के नागरिकों को 7 प्रकार के अधिकार दिए गए थे परंतु 44 वें संविधान संशोधन 1979 के द्वारा सातवां मौलिक अधिकार जो कि संपत्ति का अधिकार था को मौलिक अधिकार की सूची से हटा दिया गया है अब यह केवल एक कानूनी अधिकार मात्र ही रह गया है। इस प्रकार अब नागरिकों को संविधान द्वारा कुल 6 प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है। यह मौलिक अधिकार इस प्रकार है –
- समता का अधिकार (Right to Equality)
- स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)
- संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (Right to Culture and Education)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
Right to Equality (समता का अधिकार)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक समता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। इसके अंतर्गत नागरिकों को कुल 5 प्रकार की समानताएं प्रदान की गई है –
- कानून के समक्ष समानता (Equality Before the Law)
- सार्वजनिक स्थलों पर समानता (Equality in Public Places)
- अवसर की समानता (Equality of Opportunity)
- अस्पृश्यता का अंत (End of Untouchability)
- उपाधियों का अंत (End of Titles)
1. Equality Before the Law (कानून के समक्ष समानता)
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता के अधिकार से संबंधित है। कानून के समक्ष समानता का आशय है कि राज्य सभी के लिए एक सा कानून बनाएगी। कानून बनाने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा कानून के समक्ष समानता का विचार ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है।
कानून के समक्ष समानता से तात्पर्य बिल्कुल भी नहीं है कि राज्य कानून बनाने के साथ उसे मान्यता देते समय इसी प्रकार का भेदभाव ना करें यदि कानून कर लगाने से संबंधित है और यह धनी एवं गरीब वर्ग के स्त्री या पुरुष से संबंधित है तो ऐसे में सरकार यदि भेदभाव करती है अर्थात गरीबों के लिए कर में कमी करती है तो इसे मैं तो नहीं कहा जाएगा।
2. Equality in Public Places (सार्वजनिक स्थलों पर समानता)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थलों पर समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। जिसके अनुसार राज्य, धर्म, वंश, जाति, जन्म स्थान, लिंग आदि किसी के आधार पर राज्य नागरिकों से किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते। इसके अंतर्गत यह भी कहा गया है कि दुकानों, होटलों और किसी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे – कुओं, तालाबों, स्नान घरों, सड़कों आदि किसी भी स्थान पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
3. Equality of Opportunity (अवसर की समानता)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के अंतर्गत अवसर की समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है इसके अंतर्गत व्यवस्था की गई है सभी नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्त होने के लिए समान अवसर प्रदान किए जाएंगे। धर्म, वंश, जाति, जन्म स्थान, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही यह भी व्यवस्था है कि राज्य को यह अधिकार होगा कि सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए वह विशेष योग्यताएँ निर्धारित कर सकता है।
4. End of Untouchability (अस्पृश्यता का अंत)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है अस्पृश्यता से तात्पर्य छुआछूत से है अर्थात अनुच्छेद 17 के द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाले किसी भी अयोग्यता को लागू करना अपराध घोषित किया गया है और जिसके लिए कानून द्वारा कठोर दंड का भी प्रावधान किया गया है।
5. End of Titles (उपाधियों का अंत)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के अंतर्गत व्यवस्था की गई है कि भारत का कोई भी नागरिक बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के किसी भी विदेशी राज्य की कोई भी उपाधि धारण नहीं कर सकता अर्थात कोई भी उपाधि स्वीकार नहीं करेगा। इसके साथ ही राज्य केवल सेना (वीर चक्र, परमवीर चक्र) और शिक्षा (भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्मश्री और पद्म भूषण) के अतिरिक्त कोई भी उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
इस प्रकार समानता के अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को पांच प्रकार के अधिकार दिए गए हैं।
तो दोस्तों आज हमने मौलिक अधिकार के एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार समानता के अधिकार के बारे में पढ़ा है अब आगे हम स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में पढ़ेंगे तब तक के लिए आप अपनी तैयारी जारी रखें हम आपके लिए ऐसे ही study से related post लाते रहेंगे।
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