Chandragupta Maurya rule

Chandragupta Maurya’s rule | चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था

चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था

(Chandragupta Maurya’s rule)

आज हम चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) की शासन व्यवस्था के बारे में पढ़ने वाले हैं हम जानेंगे कि चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था को प्राचीन इतिहास में प्रमुख क्यों माना जाता है और इसकी शासन व्यवस्था किस प्रकार थी? तो चलिए जानते हैं चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) की शासन व्यवस्था के बारे में।

 

Chandragupta Maurya’s Rule (चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था)

शासन व्यवस्था के बारे में जानकारी हमें मुख्य रूप से दो स्त्रोतों के आधार पर प्राप्त होती है यह दो स्त्रोत इस प्रकार हैं –

1. मेगास्थनीज की पुस्तक इंडिका द्वारा वर्णित
2. कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में वर्णित

Governance System described by Megasthenes (मेगस्थनीज द्वारा वर्णित शासन व्यवस्था)

मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था का वर्णन किया है। मेगास्थनीज कि यह पुस्तक भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में एक विदेशी दूत था और उस के दरबार में रहकर वहां की शासन व्यवस्था को देखता था।

इस प्रकार उसके द्वारा वर्णित शासन व्यवस्था के बारे में जानकारी हमें उसकी पुस्तक से मिलती है और जो की बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हालांकि उसकी पुस्तक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं प्राप्त होती परंतु फिर भी यह मौर्य साम्राज्य (Chandragupta Maurya) की जानकारी का मुख्य स्रोत माना जाता है

मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त की शासन व्यवस्था को चार भागों में विभाजित किया था यह चार भाग निम्न प्रकार है –

1. सैन्य प्रबंध (Military Management)
2. नगर प्रशासन (City Administration)
3. ग्राम प्रशासन (Village Administration)
4. न्याय और दंड व्यवस्था (Justice and Penal system)

Military Management (सैन्य प्रबंध)

मेगास्थनीज के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) ने अपनी सेना को चार भागों में विभाजित कर रखा था यह चार भाग – पैदल, अश्वरोही, हाथी और रथ थे। उसकी सेना में 6,00,000 पैदल, 30,000 अश्वरोही, 9000 हाथी और 8000 रथ सेना थी।

इन्हें कई परिषदों में बांटा गया था कुल मिलाकर के 5 परिषद देखने को मिलते हैं। प्रत्येक के कार्य एक दूसरे से अलग-अलग थे इन परिषदों को समितियों में विभाजित किया गया था प्रत्येक परिषद में 6 समिति थी।

प्रथम समिति का कार्य जल सेना की व्यवस्था करना था तथा दूसरी का कार्य आवश्यक वस्तु का प्रबंध करना था। तीसरी समिति पैदल सेना से संबंधित थी इसी तरह चौथी अश्वरोही सेना, पांचवी रथ सेना और छठी गज सेना से संबंधित थी।

City Administration (नगर प्रशासन)

मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन में पांच-पांच सदस्यों की 6 समितियां थी इन समितियों के कार्य अलग-अलग थे। नगर के प्रमुख अधिकारी को एस्ट्रोनोमोई कहा जाता था जबकि जिले के प्रमुख अधिकारी को एग्रोनोमोई कहते थे। पाटलिपुत्र का नगर प्रशासन 30 सदस्य द्वारा संचालित किया जाता था इन 30 सदस्यों को 6 समितियों में विभाजित किया गया था यह समितियां इस प्रकार थी –

1. पहली समिति औद्योगिक एवं शिल्प कला से संबंधित थी अर्थात यह समिति औद्योगिक एवं कलाओं का निरीक्षण करते थी।

2. दूसरी समिति विदेशियों के प्रबंधन से संबंधित थी अर्थात यह समिति विदेशों की गतिविधियों को देखते थी।

3. तीसरी समिति जन्म मृत्यु से संबंधित थी।

4. चौथी समिति व्यापार से संबंधित समिति थी अर्थात यह समिति वस्तुओं के क्रय विक्रय को देखती थी।

5. पांचवी समिति उद्योग धंधों की देखभाल करती थी अर्थात इस समिति का कार्य व्यक्तिगत वस्तुओं की रखवाली एवं देखभाल करना था। यह समिति इस बात का ध्यान रखती थी कि कोई भी व्यक्ति पुरानी वस्तुओं को नई वस्तुओं में मिलाकर तो नहीं बेच रहा है यह समिति वस्तुओं की देखभाल करता था।

6. छठी समिति कर वसूली से संबंधित समिति थी इस समिति का कार्य वस्तुओं पर लगने वाले कर को वसूलना था।

Village Administration (ग्राम प्रशासन)

यह शासन का सबसे छोटा स्वरूप था ग्राम का प्रमुख अधिकारी ग्रामिक कहलाता था जिसके पास ग्राम प्रशासन से संबंधित समस्त कार्य-भार होते थे।

 

Justice and Penal system (न्याय एवं दंड व्यवस्था)

मेगास्थनीज के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के पास कोई भी व्यक्ति आसानी से पहुंच सकता था। वह दिन में न्यायालय में उपस्थित रहता तथा अपनी प्रजा की शिकायतों को सुनता था। उसके अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य कठोर दंड देता था अर्थात मृत्युदंड देता था विश्वासघात करने वालों को अंगच्छेदन का दंड निर्धारित था।

इस प्रकार मेगास्थनीज द्वारा वर्णित शासन व्यवस्था इस प्रकार थी मेगास्थनीज द्वारा वर्णित शासन व्यवस्था का प्राचीन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है तथा यह जानकारी का मुख्य स्रोत है।

Governance System described by Kautilya (कौटिल्य द्वारा वर्णित शासन व्यवस्था)

कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र से हमें चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलती है। चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है यह पुस्तक हमें प्राचीन काल से संबंधित बहुत सारी जानकारियां देती हैं यह मौर्य साम्राज्य से संबंधित सभी विषयों के बारे में हमें विस्तार से बताते हैं।

अतः हमें मौर्य शासन व्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र से ही मिलती हैं। कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र पुरातत्वविद द्वारा 1905 में खोज निकाली गई थी यह पुस्तक हमें मौर्य साम्राज्य के विषय में जानकारी देते हैं।

कौटिल्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था को निम्न भागों में विभाजित किया है –

1. केंद्रीय प्रशासन (Central Administration)
2. प्रांतीय प्रशासन (Provincial Administration)
3. स्थानीय प्रशासन (Local Administration)
4. न्याय व्यवस्था (Judicial system)
5. गुप्तचर विभाग (Intelligence Department)
6. सैन्य प्रशासन (Military Administration)

Central Administration (केंद्रीय प्रशासन)

चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) की शासन व्यवस्था केंद्रीय शासन व्यवस्था थी अर्थात इस शासन व्यवस्था में राजा केंद्र बिंदु होता था। वह कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका तीनों का प्रमुख होता था सभी महत्वपूर्ण कार्य उसी के द्वारा किए जाते थे। राजा सभी पर नियंत्रण रखता तथा शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाता था।

अशोक के अभिलेखों एवं तीसरे, चौथे एवं छठे शिलालेखों और चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में इसके कार्यों का उल्लेख मिलता है तथा इसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मंत्रिपरिषद के सदस्यों का चुनाव राजा द्वारा ही किया जाता था तथा वह चुनाव व्यक्ति के चरित्र को भलीभांति देखकर ही करता था।

मंत्री परिषद के सदस्यों को कुल मिलाकर 12000 पण वार्षिक वेतन मिलते थे अन्य मंत्रियों को जैसे पुरोहित, सेनापति और युवराज को 48000 पण वार्षिक वेतन दिया जाता था। सबसे प्रमुख अधिकारियों को तीर्थ का जाता था जिसके बारे में हमें जानकारी अर्थशास्त्र मिलती है।

इन्हें महामात्र भी कहा जाता था अधिकतर स्थानों पर महामात्र शब्द का उपयोग किया गया है। अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों का उल्लेख मिलता है यह 18 तीर्थ इस प्रकार थे – 1) मंत्री, 2) पुरोहित, 3) सेनापति, 4) युवराज, 5) द्वारिका अर्थात द्वार का रक्षक, 6) अंतर्वेशिका, 7) प्रशास्ता अर्थात पुलिस विभाग का अध्यक्ष, 8) सन्निधाता अर्थात कोष का अध्यक्ष, 9) प्रदेष्टा अर्थात फौजदारी का प्रमुख न्यायाधीश, 10) पौर व्यवहारिक अर्थात अदालत का मुख्य विचारक, 11) मंत्रीपरिषद का अध्यक्ष, 12) नायक अर्थात नगर का प्रमुख पुलिस अधिकारी, 13) कार्मान्तक अर्थात कारखानों का अधिकारी, 14) समाहर्ता अर्थात कर वसूल करने वाला, 15) दंड पाल अर्थात दंड देने वाला अधिकारी, पुलिस अध्यक्ष, 16) दुर्गपाल अर्थात दुर्ग का रक्षक, 17) आटविक अर्थात वन की रक्षा करने वाला अधिकारी, 18)अंत पाल अर्थात सीमा की रक्षा करने वाला अधिकारी।

इस प्रकार कुल मिलाकर 18 तीर्थ होते थे।

Provincial Administration (प्रांतीय प्रशासन)

शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए साम्राज्य को प्रांतों में विभक्त कर दिया गया था। इन प्रांतों के प्रशासक राजकुमार हुआ करते थे। मौर्य साम्राज्य को 5 प्रांतों में विभाजित किया गया था – उत्तर की राजधानी तक्षशिला, दक्षिण की राजधानी स्वर्णगिरी, अवंति की राजधानी उज्जैनी, कलिंग की राजधानी तोसलि एवं प्राच्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।

प्रांतीय प्रशासन में भी मंत्रिपरिषद देखने को मिलती थी जो मुख्य रूप से केंद्र से जुड़ी रहती थी। प्रांतों को चक्र कहा जाता था इन्हें कई छोटे-छोटे मंडलों में विभाजित किया गया था इन पर महामात्य नामक अधिकारी नियंत्रण रखता था मंडलों को विषय या आहार भी कहा जाता था।

 

Local Administration (स्थानीय प्रशासन)

चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) की शासन व्यवस्था में हमें स्थानीय प्रशासन व्यवस्था भी देखने को मिलती है जिसके अंतर्गत हमें गांव और जिले देखने को मिलते हैं। गांव और जिले के बीच एक मध्यवर्ती स्तर भी देखने को मिलता है स्थानीय प्रशासन का प्रमुख अधिकारी स्थानीक कहलाता था।

जनपद में समाहर्ता प्रमुख अधिकारी होता था। स्थानीय प्रशासन के अंतर्गत ग्राम प्रशासन भी आते थे यह स्थानीय प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मानी जाती थी ग्राम प्रशासन के प्रमुख अधिकारी को ग्रामीण कहा जाता था जो कि ग्राम प्रशासन से संबंधित सभी कार्यों का प्रबंध करता था।

 Judicial system (न्याय व्यवस्था)

कौटिल्य दो प्रकार के न्याय व्यवस्था का उल्लेख करता है प्रथम धर्मस्थीय अर्थात दीवानी न्यायालय तथा दूसरा कंटकशोधन अर्थात फौजदारी न्यायालय

धर्मस्थीय न्यायालय व्यवहारिक न्यायालय कहा जाता था इसके अंतर्गत संपत्ति का उत्तराधिकार, भवनों का क्रय विक्रय, धरोहर, जुआ, चोरी, खेत, चारागाह आदि से संबंधित विवाद आते थे।

कंटक शोधन न्यायालय के अंतर्गत अपराध, दुराचार, बलात्कार, बड़ी चोरी या डकैती, न्याय का उल्लंघन आदि मामले आते थे। कौटिल्य के अनुसार छोटे-छोटे दंड के लिए भी मृत्युदंड की व्यवस्था थी।

Intelligence Department (गुप्तचर विभाग)

कौटिल्य के अर्थशास्त्र से हमें गुप्तचर विभाग का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) का गुप्तचर विभाग बहुत ही संगठित था गुप्तचर विभाग के कई जगहो पर केंद्र बनाए गए थे इन केंद्रों को संस्था कहा जाता था।

गुप्तचर जिस किसी भी रहस्य का पता लगाता था उसके पता लगने के बाद वह जानकारी संस्था तक पहुंचा देता था वहां से संबंधित अधिकारी द्वारा यह सूचना राज्य कर्मचारी के पास पहुंचा दी जाती थी राज्य कर्मचारी इन सूचनाओं को राजा तक पहुंचाने का काम करता था।

कौटिल्य ने उल्लेख किया है कि गुप्तचर केवल पुरुष ना होकर स्त्रियां भी होती थी ये स्त्रियां दासी, वैश्या, भिक्षुणी कोई भी हो सकती थी। गुप्तचरों के प्रमुख अधिकारी को सर्पमहामात्य कहा जाता था। कौटिल्य के अनुसार ऐसी गुप्तचर जो साथ रहकर कार्य करते थे संस्था के लाते थे जबकि ऐसे गुप्तचर जो घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे वे संचरा कहलाते थे।

Military Administration (सैन्य प्रशासन)

कौटिल्य के अनुसार सेना को तीन भागों में विभक्त किया गया था – पुश्तैनी सेना, किराए की सेना तथा नगरपालिका से संबंधित सेना। सैनिक विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति कहलाता था लेकिन युद्ध मैं सेना का नेतृत्व करने वाला अधिकारी नायक कहलाता था। कौटिल्य के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना पैदल, अश्वारोही, रथ और गज सेना में विभाजित थी।

इस प्रकार कौटिल्य द्वारा वर्णित चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था निम्न श्रेणियों में विभाजित थी जिसके बारे में हमें जानकारी उसकी पुस्तक अर्थशास्त्र से मिलती है।

तो दोस्तों आज हमने मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था के बारे में जाना है अब आगे हम मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को जानेंगे। तब तक के लिए आप अपनी तैयारी करते रहे हम आपका साथ देते रहेंगे और study से related post लाते रहेंगे।

 

Also Read – अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार