GAUTAM BUDDHA PRINCIPLES & BUDDHIST COUNCIL

Gautam Buddhas Principles & Councils

महात्मा बुद्ध के सिद्धांत और बौद्ध संगीतियाँ

आज हम महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों के बारे में जानेंगे तथा इसके साथ ही हम बौद्ध संगीतियों के बारे में भी जानेंगे।

 

महात्मा बुद्ध के सिद्धांत

महात्मा बुद्ध एक समाज सुधारक थे इसलिए उन्होंने किसी नए धर्म का प्रतिपादन नहीं किया बल्कि उन्होंने प्राचीन समय के धर्मों में व्याप्त बुराइयों को दूर कर उन्हें एक नई दिशा दी। वे मानते थे कि यह संसार तथा हमारा जीवन आदि से अंत तक अर्थात जन्म से मृत्यु तक दुखों से भरा हुआ है और इस दुख से छुटकारा पाने का एकमात्र साधन निर्वाण प्राप्त करना है।

वे मानते थे कि कठिन तपस्या और कठोर श्रम करके निर्माण नहीं प्राप्त हो सकता इसलिए उन्होंने मनुष्य को मध्यम के मार्ग बतलाए। अतः उन्होंने निर्माण प्राप्ति के लिए चार आर्य सत्य और आठ अष्टांगिक मार्ग बताएं हैं उनके अनुसार इनका पालन करके तथा इस मार्ग पर चलकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

 

1.आर्य सत्य

महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं-

दु::- महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य का जीवन तथा यह संसार दु:खों से भरा है। इसलिए थोड़े से सुख को सुख मान लेना सही नहीं है अर्थात यह अदूरदर्शिता है।

 

दु: समुदय:- महात्मा बुद्ध के अनुसार दु:ख का मुख्य कारण तृष्णा है। ज्ञानेंद्रियों को जो वस्तु प्रिय लगती है उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा ही तृष्णा है और तृष्णा का मुख्य कारण अज्ञानता है।

 

दु: निरोध:- महात्मा बुद्ध के अनुसार दुखों का निवारण करना आवश्यक है अतः तृष्णा पर विजय प्राप्त करके ही दुखों से मुक्ति मिल सकती है और निर्वाण प्राप्त हो सकते हैं।

 

दु: निरोध गामिनी:- महात्मा बुद्ध ने दुखों से मुक्त होने तथा निर्वाण प्राप्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग बताए हैं।

 

2.अष्टांगिक मार्ग

महात्मा बुद्ध ने बताया है कि यदि मनुष्य दुखों से मुक्त होना है, तृष्णा पर विजय प्राप्त करनी है और निर्वाण प्राप्त करना है तो उन्हें अष्टांगिक मार्ग पर चलना होगा तथा इसका पालन करना होगा।

अष्टांगिक मार्ग निम्न प्रकार हैं –

 

सम्यक् दृष्टि:- मोह माया को त्याग कर उचित दृष्टि रखना।

 

सम्यक् संकल्प:- उचित वस्तुओं के प्रति संकल्प लेना

 

सम्यक् वाक्:- झूठ निंदा तथा अप्रिय वचनों का त्याग कर सत्य भाषण करना।

 

सम्यक् कर्मांत:- अहिंसा, गलत कामों को छोड़कर अच्छे कर्म करना।

 

सम्यक् आजीविका:- मनुष्य को जीविकोपार्जन के लिए सही तथा पवित्र रास्ता चुनना। इमानदारी से जीविका चलाना।

 

सम्यक् व्यायाम:- समुचित उद्दम करना अर्थात शुद्ध ज्ञान युक्त प्रयत्न, जिससे धर्म की दृष्टि उत्पन्न हो, सम्यक व्यायाम है

 

सम्यक् समिति:- बुरे वस्तुओं के स्थान पर उचित एवं पवित्र वस्तु का सदैव स्मरण करना।

 

सम्यक् समाधि:- चित अर्थात मन को एकाग्रता प्रदान करना। सम्यक समाधि प्राप्त करने पर मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है।

 

बौद्ध धर्म में मनुष्य के जीवन का प्रमुख लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। बौद्ध धर्म का मानना है कि निर्वाण प्राप्त करने के लिए ही मनुष्य का जन्म हुआ है और यह निर्वाण मनुष्य को इसी जन्म में प्राप्त हो सकता है। हालांकि महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद प्राप्त होता है लेकिन निर्वाण प्राप्ति जो कि इसी जन्म में संभव है के लिए बौद्ध धर्म में अनेक रास्ते बताए गए हैं।

महात्मा बुद्ध ने दस शील भी बताएं जिसका पालन करके और जिस के मार्ग पर चलकर मनुष्य को दुखों से मुक्ति मिल सकती है और वह निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं।

 

3.दस शील

महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए दस शील इस प्रकार है-

() अहिंसा (किसी प्रकार की हिंसा ना करना)

() सत्य (सदैव सत्य बोलना। झूठ का सहारा ना लेना)

() अस्तेय (इसका तात्पर्य है चोरी ना करना)

() अपरिग्रह (संपत्ति का परित्याग करना)

() ब्रह्मचर्य व्रत

() संगीत और नृत्य का त्याग

() अंजनपुर और मादक द्रव्यों का त्याग

() सुखद शय्या का त्याग

() कामिनी और कंचन का त्याग।

 

महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए 10 शीलों में से शुरुआत के 5 शील यानी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा सुखद शय्या का त्याग गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वालों को भी करनी चाहिए जबकि भिक्षुओं को इन दसों शीलों का पालन करना चाहिए।

 

कर्मवाद एवं पुनर्जन्म में विश्वास

महात्मा बुद्ध का मानना था की मनुष्य इस जन्म में रहकर जो भी कर्म करते हैं उनका फल उन्हें अवश्य मिलता हैं। कर्म चाहे अच्छा हो या बुरा उसका फल मनुष्य को जरूर मिलता हैं।

उनका मानना था कि यह फल उन्हें इसी जन्म में मिलता है और मनुष्य की आत्मा शरीर बदलती रहती है वह एक शरीर के बाद दूसरे शरीर में प्रवेश करती हैं और प्रत्येक शरीर द्वारा किए जाने वाले कर्म के आधार पर इसे प्रत्येक बार फल भोगने पड़ते हैं।

महात्मा बुद्ध आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं और पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं वह कहते हैं कि मनुष्य का पुनर्जन्म उनके कर्मों के आधार पर ही होता है।

 

बौद्ध धर्म के महासम्मेलन या महासंगीतियाँ

हमें 4 बौद्ध संगीतियां देखने को मिलती हैं

 

प्रथम बौद्ध संगीति:- प्रथम बौद्ध संगीति हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु के समय में 483 ईसा पूर्व में हुई थी। इस बौद्ध संगीति के अध्यक्ष महाकश्यप थे तथा यह संगीति राजगृह (बिहार) में हुई थी।

 

द्वितीय बौद्ध संगीति:- द्वितीय बौद्ध संगीति शिशुनाग वंश के शासक कालाशोक के समय में 383 ईसा पूर्व हुई थी। इस बौद्ध संगीति के अध्यक्ष सबाकामी थे तथा यह संगीति वैशाली में हुई थी।

 

तृतीय बौद्ध संगीति:- तृतीय बौद्ध संगीति मौर्य वंश के शासक अशोक के समय में 255 ईसा पूर्व में हुई थी इस बौद्ध संगीति के अध्यक्ष मोग्गलीपुत्त तिस्स थे। यह बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में हुई थी।

 

चतुर्थ बौद्ध संगीति:- चतुर्थ बौद्ध संगीति सम्राट कनिष्क के समय में ईसा की प्रथम शताब्दी में हुई थी इस संगीति के अध्यक्ष वासुमित्र थे। यह संगीति कश्मीर के कुंडलवन में हुई थी।

 

तो आज हमने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और बौद्ध संगीतियों के बारे में जान लिया है। अब आगे हम जैन धर्म के बारे में जानेंगे। तब तक के लिए आप अपनी तैयारी करते रहे। हम आपका साथ देते रहेंगे और  study से related articles लाते रहेंगे।

 

 

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