हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक, धार्मिक जीवन तथा कला

Indus Valley Civilization (सिंधु घाटी सभ्यता ) Part 3 – सामाजिक, धार्मिक जीवन तथा कला

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन

हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक जीवन को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया गया था।

 

जीवन स्तर

● हड़प्पा सभ्यता में समाज दो भागों में विभाजित समाज में उचित तथा मध्यम श्रेणी के लोग रहते थे लेकिन उनमें से कोई भी ना पतो ज्यादा धनवान ही था और ना ही कोई बहुत ही ज्यादा गरीब।

● हड़प्पा सभ्यता मुख्यता व्यापारी प्रधान था। तथा समाज में अमीर हो चाहे गरीब दोनों एक बार व्यापार तथा कृषि करते थे हड़प्पा सभ्यता को समाज मातृप्रधान। यहां के निवासी समाजवाद की भावना से ओतप्रोत हैं और जनतंत्र प्रणाली को भलीभांति जानते थे।

 

आभूषण

● सिंधु सभ्यता के निवासियों को आभूषणों का शौक था। स्त्री हो या पुरुष दोनों ही आभूषण धारण करते थे। पुरुष प्रायः अंगूठियां पहनते थे जबकि स्त्रियां कानों में झुमके, बालियां,कमर में करधनी, पैरो में पायल आदि पहना करती थी।

● धनी परिवार के लोग सोने, चांदी तथा हाथी दांत जैसे मूल्यवान पत्थरों से बने आभूषण पहनते थे जबकि साधारण परिवार के लोग तांबे, हड्डी और पकी हुई मिट्टी के आभूषण धारण करते थी।

 

वेश भूषा तथा श्रृंगार

● सिंधु निवासी रेशमी और सूती कपड़ों का उपयोग करते थे। वह लोग आज के समय की तरह सिले हुए कपड़ों के उपयोग नहीं करते थे।

● पुरुष शाल तथा चादर को कंधे पर धारण करते थे तथा नीचे धोती या लूंगी पहनते थे। स्त्रियों के पुरुषों के समाने वस्त्र धारण करते थे।

● स्त्रियां बालों को चोटी करके उसे लपेट होती थी जबकि पुरुष ऑक्सफोर्ड फैशन कि तरह ऊपर की ओर करके बाल बनाते थे।

● परूष दाढ़ी तथा मूंछ दोनों ही रखते था।

● पुरुष तथा स्त्री दोनों श्रृंगार के लिए दर्पण का उपयोग करते थे

● हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से एक शीशी मिली है जिसमें काले रंग की कोई वस्तु जमी हुई है इस काले रंग की वस्तु को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि यह वस्तु काजल है। अतः यह ज्ञात होता है कि स्त्री और पुरुष दोनों ही मुख रूप से काजल का इस्तेमाल करते थे।

● काजल के यह साक्ष्य चन्हूदड़ो से प्राप्त हुए है।

 

मनोरंजन के साधन

● सिंधु सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खेल जैसे- जुआ खेलना शिकार खेलना आदि खेल खेलते थे। इसके साथ ही वे लोग मनोरंजन के लिए गाना, बजाना, नाचना, मुर्गों की लड़ाई आदि का भी शौक रखते थे।

● हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से जो मुद्रा प्राप्त हुई है पर उस पर तीर कमान से बारहसिंघा का शिकार करते हुए दिखाया गया है जिससे यह ज्ञात होता है कि यह लोग शिकार का खेल भी खेलता था तथा बराहसिंघा का शिकार करते थे।

● यहां के लोगो को जुआ खेलने का भी बहुत शौक था। हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से हांथी दांत तथा पत्थर एवं मिट्टी के पासे प्राप्त हुए है जो इनके इस शौक की पुष्टि करता है।

 

अस्त्र शस्त्र

● सिंधु निवासी युद्ध प्रमी नहीं थे फिर भी जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिए कई प्रकार के हथियार रखते थे। इनके हथियारों में प्रायः भाला, धनुष तथा बाण, कटार आदि होते थे।

 

मृतक संस्कार

● सिंधु सभ्यता के लोग मृतकों को जला देते थे जलाने के पश्चात जो हड्डियों का चूड़ा बचता था उसे राख में मिलाकर इधर-उधर फेंक देते थे या फिर किसी दूसरे मटके या बर्तन में भरकर उसे मिट्टी में गाड़ देते थे। कभी-कभी मैं वे मृतक के शव को दफना देते थे और कभी-कभी मृत शरीर को खुले स्थान पर छोड़ देते थे जिससे की वह पशु पक्षी का भोजन बाण जाता था।

● किस प्रकार सिंधु निवासी तीन प्रकार से मृतकों का अंतिम संस्कार करते थे।

 

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन

हड़प्पा स्थलों की खुदाई से प्राप्त साक्ष्य के आधार पर हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन के बारे में पता चलता है हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक समाज था। हड़प्पा सभ्यता के लोग विभिन्न प्रकार के देवी- देवताओं की पूजा करते थे। इनका धार्मिक जीवन इस प्रकार है।

 

मातृदेवी

● हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से मातृ देवी की बहुत सारी मूर्तियां प्राप्त हुई है। इन्हें पृथ्वी या मातृ देवी का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही मोहरों पर अंकित चित्र के आधार पर भी मात्र देवी के बारे में पता चलता है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और धोलावीरा से असंख्य देवियों की मूर्ति प्राप्त हुई है जिन को विद्वानों ने मातृ देवी की मूर्ति माना है।

 

शिव पूजा

● हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से प्राप्त एक सील पर पुरुष देवताओं में तीन सिंह वाले एक देव मूर्ति का विशेष रूप से उल्लेख है। यह मूर्ति एक आसान पे पालथी मारकर बैठे एक योगी के रूप में है। जिसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गैंडा है तथा आसान के नीचे एक भैंसा और पैरो के पास दो हिरण है। चारो पशु पृथ्वी के चारो ओर देखते है। अनेक विद्वान इस योगी के चित्र को पशुपति शिव का प्रतीक मानते है।

 

पशु पूजा

● सिंधु सभ्यता के लोग विभिन्न प्रकार के पशुओं कि भी पूजा करते थे। उत्खनन से विभिन्न प्रकार के पशुओं कि मूर्ति प्राप्त हुई है। इन पशुओं में कुबड़दार सांड का प्रमुख पशु है। इसके अतिरिक्त बाघ, भेड़, बकरी, गेंडा, हिरण, तोता, मछली आदि के खिलौने मिले हैं जिससे भी यह पता चलता है कि सिंधु निवासी विभिन्न प्रकार के पशुओं की पूजा करते थे तुरंत यह निश्चित नहीं है कि वह इन सभी पशुओं की पूजा करते थे कि नहीं। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वह कुबड़दार सांड का संबंध सिंधु निवासीयों के धार्मिक विश्वास के साथ था। इसके साथ ही कई जगह पर पशुओं को आधा पशु तथा आधा मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है।

 

सूर्य पूजा

● हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से कुछ ऐसी मुहरे प्राप्त हुई है जिन पर बने चित्रो में कुछ ऐसे चक्र बने हुए है इसके चारों ओर से किरणें निकलती नजर आ रही हैं और जो सूर्य की उपासना का प्रमाण दे रही हैं। अतः इस तरह के चित्रों को देखकर इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के लोग सूर्य की पूजा भी करते होंगे।

 

वृक्ष पूजा

● देवी देवताओं के अतिरिक्त सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्ष पूजा भी करते थे। हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से अनेक वृक्षों के चित्र तथा मूर्तियां प्राप्त हुई है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग वृक्षों की पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो से एक ऐसी मुद्रा मिली है जिस पर पीपल के वृक्ष का चित्र अंकित है इसके साथ ही उस पर सहचरियों की सेवा करती हुई वृक्ष की देवी भी अंकित है पास ही एक पशु भी बना है जिसका कुछ अंग बैल के रूप में, कुछ बकरे के और कुछ मनुष्य के रूप में बना हुआ है। अतः इन सब चित्रों के आधार पर ही इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता में वृक्ष पूजा के प्रमाण पर विश्वास करते हैं और यह मानते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में वृक्षों की पूजा की जाती होगी।

 

हड़प्पा सभ्यता की कला

हिंदू सभ्यता के लोग कला से भी परिचित है सिंधु सभ्यता की खुदाई अनेक मूर्तियां, बर्तन, कलश, मुहरें, आभूषण आदि प्राप्त हुए है जो कि उस समय के ललित कला का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

 

मूर्तिकला

● सिंधु सभ्यता के उत्खनन में अनेक स्थलों से मिट्टी,पत्थर और तांबे की मूर्तियां प्राप्त हुई है। इन मूर्तियों में सबसे अधिक मूर्ति मिट्टी की बनी हुई प्राप्त हुई है और इनमें सर्वाधिक मूर्तियां नारी एवं पुरुष की है। कुछ नारियों की मूर्ति को तो मातृदेवी के रूप में दिखाया गया है। पशु-पक्षियों में बैल और सांड की मूर्तियां सबसे अधिक है तथा इसके अतिरिक्त हाथी, कुत्ता, सांप, बकरी आदि की भी मूर्तियां मिली है। कुछ मूर्तियां तो बहुत विचित्र सी है जैसे मनुष्य का शरीर और पशु के सिर वाली मूर्तियां।

● मिट्टी की मूर्ति की तुलना में धातु और पत्थर की मूर्तियां बहुत कम मिली है फिर भी कला की दृष्टि से देखा जाए तो उनका भी स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। मोहरों की तरह ही इन मूर्तियों के निर्माण भी एक महान और कुशल कारीगरों द्वारा किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि धातु और पत्थर की मूर्तियां संपन्न लोगों द्वारा बनवाई गई थी जबकि मिट्टी की मूर्तियां सामान्य लोगों द्वारा बनवाई गई थी।

● मूर्तियों और खिलौनों को बनाने के लिए तांबे तथा कांसे का उपयोग किया जाता था इन मूर्तियों में मोहनजोदड़ो से प्राप्त काम से की नर्तकी की मूर्ति बहुत ही आकर्षक और महत्वपूर्ण है। मोहनजोदड़ो से ही तांबे का बना एक सांड का खिलौना प्राप्त हुआ है। एक बकरी का सुंदर खिलौना भी प्राप्त हुआ है जो कि पीतल का बना हुआ है। तांबे और पीतल के कुत्ते का खिलौना भी मिला है। चन्हूदड़ो से पीतल का एक बतख मिला है।

 

लेखन कला (लिपि)

● हड़प्पा सभ्यता की लिपि के कीलाक्षर लिपि है जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती है।

● इस लिपि को पढ़ने का प्रयास सर्वप्रथम वेडेन महोदय ने किया था।

● हड़प्पा सभ्यता की लिपि से संबंधित लेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने प्रकाशित किया।

● हड़प्पा सभ्यता की लिपि के कीलाक्षर लिपि है जो कि बस्ट्रो फेडन शैली में लिखी गई है यह एक ईरानी शैली है।

● इतिहासकारों ने किस लिपि से संबंधित 400 शब्द खोजे हैं जिसमें 17 बड़े अभिलेख और 7 छोटे अभिलेख शामिल है इसकी लिपि और भाषा दोनों अपठित है। अभी इसे पढ़ा नहीं जा सका है।