Maurya Empire | मौर्य साम्राज्य
मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire)
आज हम मौर्य साम्राज के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे कि किस तरह मौर्य साम्राज्य ने मगध को एक बहुत ही विशाल राजधानी बनाया। मौर्य साम्राज्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली साम्राज्य था मगध के उत्कर्ष को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान मौर्य साम्राज्य का था।
इस साम्राज्य में बहुत ही महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली राजा भी हुए जिन्होंने संपूर्ण उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया था। मौर्य साम्राज्य परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से बहुत ही महत्वपूर्ण है और परीक्षा में इनसे बहुत सारे प्रश्न पूछे जाते हैं इसलिए आज हम मौर्य साम्राज्य से संबंधित कई बातों को जानेंगे।
मौर्य साम्राज्य के महत्वपूर्ण शासक
मौर्य साम्राज्य में 3 महत्वपूर्ण शासक हुए जिन्होंने इसे एक विशाल साम्राज्य बनाया। ये तीन शासक इस प्रकार थे।
- चंद्रगुप्त मौर्य
- बिंदुसार
- अशोक
चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya)
मौर्यवंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था। इसका जन्म 345 ईसा पूर्व में मोरिय कुल में हुआ था। कहा जाता है कि जब चंद्रगुप्त बढ़ा हुआ तब उसने मगध के राजा के यहां सेना में नौकरी कर ली। वह बहुत ही कुशल सैनिक था और जिसकी कुशलता से खुश होकर राजा ने उसे सेनापति बना दिया।
किंतु कुछ ही समय बाद चंद्रगुप्त ने वहां के शासक के व्यवहार के कारण विद्रोह कर दिया और जिसके लिए उसे मृत्युदंड देने का आदेश दिया चंद्रगुप्त वहां के लोगों से बचकर भाग निकला और उसने नंद वंश का विनाश करने की शपथ ले ली। भागते हुए ही उसकी मुलाकात चाणक्य से हुई जिसके साथ मिलकर ही उसने नंद वंश का विनाश किया।
चाणक्य को भी नन्द राजा द्वारा अपमानित किया गया था अतः वह भी नंद वंश का विनाश करना चाहते थे। चाणक्य ने धन सहयोग से एक सेना तैयार की और चंद्रगुप्त उस सेना का सेनापति था। कुछ समय बाद चंद्रगुप्त ने अपनी सेना लेकर मगध पर आक्रमण किया लेकिन नंद राज की शक्तिशाली सेना के सम्मुख उसे पराजित होना पड़ा और अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।
इसके बाद चंद्रगुप्त को अपनी भूल का ज्ञात हो गया और उसे यह समझ में आ गया कि वह सीधा मगध पर आक्रमण नहीं कर सकता इसलिए उसने राज्य की पश्चिमोत्तर सीमा से आक्रमण करने का फैसला किया।
इस समय पंजाब में सिकंदर का राज्य था। चंद्रगुप्त ने सिकंदर को अपने स्वतंत्र विचारों के बारे में बताया जिसे सुनकर सिकंदर क्रोधित हो गया और उसने चंद्रगुप्त का वध करने की आज्ञा दी चंद्रगुप्त किसी तरह वहां से भी भाग निकला।
कुछ समय पश्चात जब सिकंदर भारत से चला गया तब चंद्रगुप्त ने अपने अपनी सेना के साथ पंजाब पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने धीरे-धीरे करके कई राजाओं से मदद ली और राज्यों को जीतते हुए मगध तक पहुंचा।
राज्यारोहण (Enthrone)
एक विशाल सेना का संगठन कर तथा प्रवर्तक नाम के शक्तिशाली राजा की सहायता प्राप्त कर चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध पर आक्रमण किया। मुद्राराक्षस के अनुसार कुछ अन्य राजा भी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ थे। चंद्रगुप्त 2 वर्ष में पाटलिपुत्र पहुंचा उसकी सेना ने पाटलिपुत्र को चारों ओर से घेर लिया था ताकि वह कहीं से भी भाग ना सके। अंत में भीषण युद्ध के बाद वहां का राजा घनानंद मारा गया और चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा घोषित किया। इसके साथ ही 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक किया गया।
सेल्यूकस से युद्ध (Battle with Seleucus)
305 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य का युद्ध सीरिया के सम्राट सेल्यूकस निकेटर के साथ हुआ। सेल्यूकस ने एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया चंद्रगुप्त ने सिंधु नदी पार कर सेल्यूकस की सेना का सामना किया। सेल्यूकस पराजित हुआ और उसे चंद्रगुप्त मौर्य से संधि करनी पड़ी इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थी।
- सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को एरिया (हिरात), कंदहार (आर्कोसिया), काबुल घाटी तथा बलूचिस्तान के चार प्रांत भेंट किये।
- सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त के साथ किया।
- सेल्यूकस ने मेगास्थनीज नाम का एक राजदूत चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा। मेगास्थनीज द्वारा लिखित पुस्तक का नाम इंडिका है।
- प्लुटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए थे।
इस प्रकार चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में हिंदू कश और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक फैल गया। चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है
चन्द्रगुप्त का अंत (End of Chandragupta)
चंद्रगुप्त मौर्य जैनी गुरु भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा प्राप्त की थी। अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त जैन साधु भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला चला गया और जहां चंद्रगिरी पर्वत पर उपवास द्वारा उसने अपने शरीर का त्याग दिया। इस प्रकार जैन धर्म के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्ष तक शासन किया और 298 ईसा पूर्व में अपने शरीर को त्याग दिया।
बिंदुसार (Bindusara)
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार 298 ईसा पूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा। बिंदुसार को कई नामों से जाना जाता है जैसे पुराणों में उसे वारिसार या भद्रसार कहा गया है तथा जैन ग्रंथ में सिंहसेन एवं यूनानी ग्रंथों में अमित्रघात कहा गया है। बिंदुसार ने अपने साथ शासनकाल में कोई नई विजय नहीं की अपितु उसने अपने पिता द्वारा प्राप्त विशाल साम्राज्य को सुरक्षित रखा। बिंदुसार के समय में हमें केवल एक विद्रोह तक्षशिला का विद्रोह देखने को मिलता है जिसे उसके पुत्र अशोक द्वारा सैनिक शक्ति के बल पर दबाया गया था। इस प्रकार बिंदुसार ने अपने शासनकाल में केवल अपने पिता द्वारा प्राप्त साम्राज्य को ही सुरक्षित रखा। अपने पिता के समान ही बिंदुसार ने भी विदेशी संबंधों को भी बढ़ाया उसके शासनकाल में एण्टियोकस नाम के एक सीरियन नरेश ने डायमेकस नाम के एक राजदूत को बिंदुसार के दरबार में भेजा।
बिंदुसार का अंत (End of Bindusara)
बिंदुसार ने लगभग 25 वर्ष तक शासन किया तथा 273 ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हुई उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक उत्तराधिकारी बना और मगध के सिंहासन पर आसीन हुआ।
आज के इस पोस्ट में हमने मौर्य साम्राज्य के बारे में पढ़ा और हमने चंद्रगुप्त मौर्य एवं बिंदुसार के बारे में जानकारी हासिल की। अब आगे हम मौर्य वंश के प्रमुख राजा अशोक के बारे में पड़ेंगे तब तक आप इसे पढ़कर अपनी तैयारी करते रहें हम आपके लिए ऐसे ही और भी बहुत सारे study से related post लाते रहेंगे।
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