प्रियदर्शी अशोक Priyadarshi Ashok

Priyadarshi Ashok | प्रियदर्शी अशोक Part-1

प्रियदर्शी अशोक (Priyadarshi Ashok)

आज के इस पोस्ट में हम मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रमुख राजा अशोक के बारे में पढ़ेंगे हम जानेंगे कि किस तरह अशोक (Ashok) ने संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त की और विजय प्राप्त करने के उपरांत ही किस तरह उसने एक बौद्ध भिक्षु के रूप में जीवन व्यतीत किया तथा किस प्रकार उसने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। साथ ही हम यह भी जानेंगे की आखिर क्यों अशोक को मौर्य साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली और प्रमुख राजा माना जाता है।

 

अशोक का प्रारंभिक जीवन (Ashoka’s Early Life)

बिंदुसार की मृत्यु के पश्चात अशोक मौर्य साम्राज्य से आसन पर आसीत हुआ। अशोक बिंदुसार का पुत्र था तथा चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र था। उसने लगभग 36 वर्ष तक शासन किया। अशोक की माता का क्या नाम था इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं प्राप्त प्राप्त हुई है।

कहा जाता है कि बिंदुसार की 16 रानियां थी तथा उसके 101 पुत्र थे इनमें सुशीम सबसे बड़ा पुत्र जबकि तृष्य सबसे छोटा पुत्र था। अशोक किस रानी का पुत्र था तथा वह किस नंबर का पुत्र था यह ज्ञात नहीं है। परंतु अशोक अपने सभी भाइयों में सबसे महान और कुशल राजकुमार था।

अपने पिता की मृत्यु हो जाने के बाद अशोक को राज्य सिंहासन को प्राप्त करने के लिए कई मतभेदों का सामना भी करना पड़ा था। इस प्रकार 273 ईसा पूर्व में बिंदुसार की मृत्यु हो जाने के पश्चात भी 4 साल के अंतराल पर 269 ईसा पूर्व में अशोक सिहासन पर आसीत हुआ

 

राज्याभिषेक (Coronation) 

पुराणों के अनुसार बिंदुसार की मृत्यु 273 ईसा पूर्व में हो चुकी थी। बिंदुसार की मृत्यु के पश्चात अशोक (Ashok) को राज्य शासन को प्राप्त करने के लिए अपने भाइयों से कई संघर्ष करने पड़े। अपने सभी भाइयों में अशोक सबसे महान और योग्य राजकुमार था।

अपने पिता के शासनकाल में ही उसने तक्षशिला के विद्रोह को समाप्त कर अपनी योग्यता का प्रमाण प्रस्तुत किया था। हालांकि अशोक का सबसे बड़ा भाई सुशीम भी एक ही योग्य राजकुमार था इस कारण मौर्य साम्राज्य के सिहासन को प्राप्त करने के लिए अशोक को लगभग 4 वर्ष तक अपने भाई के साथ संघर्ष करना पड़ा परंतु अंत में अशोक की विजय हुई और 269 ईसा पूर्व में अशोक का राज्याभिषेक किया गया

 

अशोक का अंत (Ashoka’s End)

232 ईसा पूर्व में लगभग अशोक की मृत्यु हो गई उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र कुणाल मगध के सिंहासन पर बैठा। कुणाल ने लगभग 8 वर्ष शासन किया इसके बाद दशरथ, संप्रति, शालिशुक, देवशर्मा और अंत में वृहद्रथ राज गद्दी पर बैठा।

 

अशोक द्वारा की गई विजयें (Victories made by Ashoka)

चंद्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर और कलिंग को छोड़कर संपूर्ण उत्तर पश्चिम भारत पर अधिकार कर लिया था अतः अशोक ने अपने समय में कश्मीर और कलिंग जैसे दो शक्तिशाली साम्राज्य को भी जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।

 

कश्मीर विजय (Kashmir Vijay)

अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अशोक ने सर्वप्रथम कश्मीर पर आक्रमण किया उस समय कश्मीर में शक्तिशाली साम्राज्य था। चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण उत्तर भारत पर अधिकार किया था परंतु वह कश्मीर पर अधिकार नहीं कर पाया था अतः अशोक ने सर्वप्रथम कश्मीर पर आक्रमण कर उस पर अधिकार किया। अशोक की इस विजय के बारे में हमें कल्हण कृत राजतरंगिणी से जानकारी मिलती है।

 

कलिंग विजय (Kalinga Vijay)

अशोक के शासनकाल में कलिंग एक बहुत ही शक्तिशाली और विशाल साम्राज्य था और जिस पर विजय प्राप्त करना कठिन था। अशोक के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण विजय कलिंग विजय ही मानी जाती है क्योंकि इस विजय के पश्चात अशोक ने युद्ध करना छोड़ दिया था।

अपने राज्याभिषेक के 8 वर्ष लगभग 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था। एक बहुत ही भीषण युद्ध के बाद तथा अनेक हत्याएं करने के बाद अंत में अशोक की विजय हुई और उसने कलिंग पर अधिकार कर लिया। कलिंग विजय अशोक की सबसे महत्वपूर्ण विजय मानी जाती है। क्योंकि इस विजय के बाद अशोक ने युद्ध करना छोड़ दिया था

यह विजय अशोक की आखरी विजय थी। इस विजय से हुए रक्तपात को देखकर अशोक को इतना आघात पहुंचा कि उसने दोबारा कभी युद्ध ना करने की शपथ ले ली और इसके साथ ही उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

 

अशोक का धम्म (Ashoka’s Dhamma)

कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक ने युद्ध करना छोड़ दिया और उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अशोक (Ashok) बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया और उसने कई शिलालेखों की स्थापना कराई जिसमें उसने बुद्ध, धम्म और बौद्ध संघ तीनों के प्रति अपनी आस्था को प्रकट किया।

प्रथम स्तंभ लेख से पता चलता है कि सर्वप्रथम अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और करीब दो या ढाई वर्ष तक बौद्ध धर्म का उपासक रहा इसके बाद वह बौद्ध संघ में सम्मिलित हो गया तथा इसके पश्चात उसने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार का कार्य किया।

अशोक ने अपने जीवन काल में महात्मा बुद्ध से संबंध रखने वाले स्थानों का भी भ्रमण किया उसने लुंबिनी, कपिलवस्तु, बुद्धगया, सारनाथ और कुशीनगर की यात्रा भी की।

स्वयं को बौद्ध धर्म का संरक्षक मानते हुए उसने ऐसे यज्ञ को करने पर रोक लगा दिया जिसमें पशु वध होता था। इसके साथ ही उसने दैनिक जीवन में प्रतिदिन भोजन के रूप में खाये जाने वाले दो मोर और एक हिरण का वध भी बंद करा दिया।

उसने बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप में तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कुछ ऐसे बातों को बौद्ध धर्म में सम्मिलित किया जिसका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था।

 

1. माता पिता तथा अपने से बड़े बड़ों का सम्मान करना उनकी आज्ञा का पालन करना।

2. मित्रों, संबंधियों, परिचितों, ब्राह्मणों को दान देना।

3. सभी जानवरों के प्रति दया भाव रखना और हिंसा ना करना।

4. ज्यादा वस्तुएं ना रखना और ज्यादा खर्च ना करना।

5. दासो, सेवकों, स्त्रियों, ब्राह्मणों, बड़े बूढ़ों और पीड़ितों के साथ अच्छा व्यवहार करना।

6. मन तथा कर्म को शुद्ध करना ।

7. मित्रों, परिचितों, साथियों, संबंधियों और अन्य लोगों के साथ प्रेम का भाव रखना।

ये कुछ ऐसे नियम थे जो अशोक द्वारा बनाए गए थे और जिनका पालन करना सभी के लिए आवश्यकता था। इसके साथ ही क्रोध ना करना, अभिमान ना करना, ईर्ष्या ना करना, उचित व्यवहार करना आदि भी धर्म से संबंधित कार्य माने जाते थे।

 

आज के इस पोस्ट में हमने अशोक (Ashok) के प्रारंभिक जीवन, राज्याभिषेक, उसकी विजयों तथा अशोक के  धम्म से संबंधित कई बातों को जाना है। अब आगे हम अशोक के धम्म  की विशेषताओं, अशोक द्वारा किए गए बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के कार्य तथा मौर्यकालीन समाज से संबंधित कई बातों को जानेंगे। तब तक के लिए आप इसे पढ़कर अपने ज्ञान को बढ़ाते रहें हम आपके लिए ऐसे ही study से related post लाते रहेंगे।

 

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