Buddhism Propagation by Ashoka | अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार
अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार
(Propagation of Buddhism by Ashoka)
आज हम अशोक द्वारा बौद्ध धर्म (Buddhism Religion) के प्रचार के लिए किए गए कार्यों के बारे में पढ़ेंगे। तो चलिए हम जानते हैं अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किए गए कार्य के बारे में।
बौद्ध धर्म का प्रचार (Propagation of Buddhism)
अशोक ने स्वयं तो बौद्ध धर्म स्वीकार किया था अर्थात वह स्वयं बौद्ध धर्म का अनुयायी था ही साथ ही उसने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार का भी कार्य किया जोकि उसकी बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। अशोक ने निम्न प्रकार से बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार का कार्य किया –
1. स्वयं बौद्ध धर्म का पालन (Self Practice Buddhism)
सर्वप्रथम अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार किया तथा बौद्ध धर्म का अनुयाई बन गया उसने बड़ी लगन और श्रद्धा के साथ बौद्ध धर्म के नियमों और सिद्धांतों का पालन किया व संघ में सम्मिलित हो गया।
वह भिक्षु की भांति जीवन व्यतीत करने लगा तथा उसने मांस भक्षण करना छोड़ दिया उसने शुद्ध शाकाहारी बन कर बौद्ध धर्म के अनुयाई के रूप में जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया।
उसके बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा को देखकर उसकी प्रजा बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने भी बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अशोक द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार करने का तथा उसका पालन करने का उसकी प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ा।
2. बौद्ध धर्म को राजधर्म का दर्जा देना (Granting Buddhism the status of State Religion)
अशोक ने बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद तथा बौद्ध संघ में सम्मिलित होने के बाद स्वयं 2 वर्षों तक भिक्षु की तरह जीवन व्यतीत करने लगा साथ ही उसने बौद्ध धर्म को राजधर्म का दर्जा भी दिया।
प्रथम स्तंभ लेख के अनुसार सर्वप्रथम अशोक ढाई वर्ष तक बौद्ध धर्म का उपासक रहा इसके पश्चात वह बौद्ध संघ में सम्मिलित हो गया। बौद्ध संघ में सम्मिलित होने के पश्चात उसने बौद्ध धर्म को राजधर्म बना दिया।
3. बौद्ध उपदेशों को प्रचार (Preaching Buddhist Teachings)
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बौद्ध धर्म के उपदेशों को अपनी जनता तक पहुंचाने का कार्य किया जिससे उसकी जनता बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुई और उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। सर्वप्रथम उसने अपने प्रचारकों को आदेश दिया कि वह निम्न धर्म विषयक बातों को प्रचारित करें।
इन धर्म विषयक बातों में मनुष्य का सबसे प्रथम कर्तव्य माता पिता की सेवा करना था इसके पश्चात अपने मित्रों, संबंधियों, ब्राह्मणों आदि के प्रति दया भाव रखना, जीवो की हत्या ना करना, धन संचय ना करना तथा उसी के अनुसार थोड़ा-थोड़ा खर्च करना प्रमुख माने जाते थे।
बौद्ध धर्म के इन उपदेशों का अशोक की प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अशोक के उत्तराधिकारी भी बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उद्देश्यों से प्रेरित थे अतः उन्होंने भी आगे चलकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था तथा उसके अनुयाई थे।
4.धर्म यात्रा की शुरुआत (Beginning of Religious Journey)
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बहुत से कार्य किए उसने धर्म प्रचार के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य धार्मिक यात्राओं की शुरुआत की। उसने धर्म प्रचार-प्रसार के लिए तथा धार्मिक उद्देश्यों को लोगों तक पहुंचाने के लिए धार्मिक यात्राएं करना प्रारंभ की।
वह ब्राह्मणों और श्रमणों केसाथ मिलकर धार्मिक यात्रा पर जाता तथा धार्मिक यात्राओं में बौद्ध धर्म के उपदेशों का प्रचार प्रसार किया जाता तथा धर्म संबंधी बातों की चर्चा भी होती थी।
5. धर्म श्रवण करना (Listen to Religion)
बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अशोक ने धर्म श्रमण की भी व्यवस्था की थी जिसके अंतर्गत धार्मिक विषयों के ऊपर भाषण दिए जाते थे। सातवें स्तंभ लेख से ज्ञात होता है कि अशोक समय-समय पर प्रजा को धार्मिक विषयों से संबंधित उपदेश दिया करता था अशोक के इन धर्म उपदेशों को ही श्रमण कहा जाता है।
6. शिलालेख – स्तंभ लेख (Inscription – Pillar Article)
अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार कराने के लिए शिलालेखों और स्तंभ लेखों का निर्माण कराया उसने इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उपदेशों का अंकित करवाया। यह शिलालेख आज भी बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
वर्तमान समय में हमें 14 शिलालेख और 7 स्तंभ लेख प्राप्त है। शिलालेखों और स्तंभ लेख पर अंकित उपदेश जनसाधारण की भाषा में लिख पाए गए थे जिससे कि जनता इसे आसानी से समझ सके और इससे लाभ प्राप्त कर सकें।
7. पशु वध प्रतिबंधित (Animal slaughter banned)
अशोक ने बौद्ध धर्म (Buddhism Religion) के प्रचार प्रसार के कार्यों को करते हुए पशु वध प्रतिबंधित कर दिया था। पांचवी स्तंभ लेख से पशुओं के वध के विरुद्ध लाए के नियमों का उल्लेख मिलता है।
उसने अपने दैनिक जीवन में रोज दो मोरो और एक हिरण के वध को भी बंद करा दिया था तथा शुद्ध शाकाहारी बनकर एक भिक्षु की तरह जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया था। उसने ‘अहिंसा परमोधर्मः’ के सिद्धांत को जीवन का मूलमंत्र बताया।
8. तृतीय बौद्ध सम्मेलन (Third Buddhist Conference)
अशोक के काल में तृतीय बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया था। अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को प्रचारित प्रसारित और स्पष्टीकरण के लिए अपने राज्य अभिषेक के 17 वर्ष मोग्गलिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में बौद्ध संगीति का आयोजन किया।
इस संगति में बौद्ध धर्म के विभिन्न महत्व के बारे में चर्चा की गई और बौद्ध धर्म में व्याप्त दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किए गए।
9.पाली भाषा का प्रयोग (Use of Pali language)
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के कार्य को करने के लिए पाली भाषा का प्रयोग किया। उसने अपने अभिलेखों शिलालेखों आदि को भी पाली भाषा में ही लिखवाया। जनसाधारण की भाषा पाली भाषा थी इस वजह से बौद्ध धर्म (Buddhism) के प्रचार प्रसार में अशोक को अधिक कठिनाइ का सामना नहीं करना पड़ा।
जनसाधारण की भाषा में बौद्ध धर्म के प्रचार होने से जनता इसे आसानी से समझ सकी और उन्हें अधिक कठिनाइयां नहीं झेलनी पड़ी जिससे बौद्ध धर्म का प्रचार करना आसान हो गया।
आज हमने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक द्वारा किए गए कार्यों के बारे में पढ़ा है अब आगे हम चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था के बारे में पढ़ेंगे तब तक आप अपनी तैयारी करते रहें हम आपका साथ देते रहेंगे और आपके लिए ऐसे ही study से related post लाते रहेंगे।
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