Rise of Magadh and Maurya Empire

Rise of The Magadha and The Maurya Empire | मगध और मौर्य साम्राज्य का उदय

मगध और मौर्य साम्राज्य का उदय

(Magadha and the rise of the Maurya Empire)

 

आज हम मगध के उत्कर्ष या मौर्य साम्राज्य के उदय के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे की मदद के उत्कर्ष में किन राजवंशो ने योगदान दिया और इस राजवंश के प्रमुख शासक कौन-कौन थे जिन्होंने मागध को इतना शक्तिशाली बनाया।

 

मगध का उत्कर्ष (Rise of Magadha)

 

भारत के इतिहास में मगध साम्राज्य का बहुत अधिक महत्व है। प्राचीन मगध वर्तमान में बिहार और पटना के मध्य स्थित था। मगध के महत्वपर्ण होने का प्रमुख कारण यह था कि इस समय बहुत सारे महत्वपर्ण शासक हुए जिन्होंने मगध को एक विशाल राजधानी बनाई और यह एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली राज्य के रूप में उभर कर सामने आया।

मगध के उत्कर्ष में बहुत सारे महत्वपूर्ण शासकों ने योगदान दिया था। उन्होंने मगध को अपनी राजधानी बनाई थी। इस समय कई राजवंश का भी उदय हुआ।

 ये राजवंश इस प्रकार है –

  1. हर्यक वंश (Haryanka Dynasty)
  2. शिशुनाग वंश ( Shishunaga Dynasty)
  3. नंद वंश (Nanda Dynasty)
  4. मौर्य वंश (Maurya Dynasty)

 

मगध में सबसे प्राचीन वंश का संस्थापक बृहद्रथ था। इसकी राजधानी गिरीब्रज (राजगृह) थी। जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था।

 

1. हर्यक वंश (Haryanka Dynasty)

इस वंश में तीन शासक हुए। यह शासक बिम्बिसार, अजातशत्रु और उदयन थे।

 

बिम्बिसार (Bimbisara)

हर्यक वंश का संस्थापक बिम्बिसार था। वह 544 ईसवी पूर्व में लगभग 15 वर्ष की आयु में मगध के सिंहासन पर बैठा था। वह बड़ा शक्तिशाली और महत्वकांक्षी सम्राट था। उसने अपने शासनकाल में मगध साम्राज्य का विस्तार किया। बिंबिसार ने श्रेणिक  की उपाधि धारण की थी।

उसने सर्वप्रथम अंग राज्य पर आक्रमण किया और वहां के राजा ब्रह्मदत्त को पराजित कर अंग राज्य को जीत कर अपने बेटे अजातशत्रु को उस पर शासन करने के लिए दे दिया। इसके बाद उसने कई छोटे-छोटे राज्यों को भी जीतकर मगध में मिला लिया। उसके पास एक विशाल सेना भी थी। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उसने राजगृह को अपनी राजधानी बनाई।

 

वैवाहिक संबंध

उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई राज्य के साथ वैवाहिक संबंध भी बनाए। सर्वप्रथम बिम्बिसार ने कौशल के राजा प्रसेनजित की बहन कौशलदेवी से विवाह किया। इस विवाह संबंध से उसे एक लाख की वार्षिक आय और काशी का प्रांत प्राप्त हुआ। बिम्बिसार ने दूसरा विवाह वैशाली की लिच्छिवी राजकुमारी राजा चेतक की पुत्री चेल्लना के साथ किया

इस विवाह संबंध से उसका राज्य उत्तर सीमा तक सुरक्षित हो गया। इसके बाद उसने तीसरा विवाह मद्र देश की राजकुमारी खेमा के साथ किया। ऐसे ही उसने वत्स, मद्र, गांधार, आदि राज्यों के साथ वैवाहिक संबंध बनाएं।

मृत्यु

बिंबिसार ने लगभग 52 वर्ष तक शासन किया। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। बिंबिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और 493 ईसा पूर्व में स्वयं मगध की गद्दी पर बैठ गया।

 

अजातशत्रु (Ajatashatru)

अपने पिता की हत्या करने के बाद 493 ईसा पूर्व में अजातशत्रु मगध के सिंहासन पर आसीन हुआ। अजातशत्रु ने कुणिक  की उपाधि धारण की थी। अजातशत्रु भी अपने पिता के समान महत्वकांक्षी था परंतु वह साम्राज्यवाद की भावना से ओत-प्रोत था और जिसके कारण उसे अपने जीवन में अनेक लड़ाई लड़नी पड़ी और राज्य विस्तार के लिए अनेक संघर्ष करने पड़े। यह संघर्ष निम्न राज्यों के साथ हुए-

 

कोशल से युद्ध:- अजातशत्रु का पहला आक्रमण कौशल के राजा प्रसेनजीत पर था। आक्रमण का मुख्य कारण यह था कि जब प्रसेनजीत की बहन कौशल देवी की मृत्यु हो गई तो प्रसेनजीत ने काशी प्रांत जोकि बिंबिसार को विवाह के समय दिया था वह वापस ले लिया। अजातशत्रु और प्रसेनजीत के बीच यह युद्ध लंबे समय तक चलता रहा।

अंत में अजातशत्रु को बंदी बना लिया गया और कारावास में डाल दिया गया। कहा जाता है कि जब अजातशत्रु कारावास में था तो प्रसेनजीत की पुत्री वाजिरा के साथ उसे प्रेम हो गया। और अंत में प्रसेनजीत को हार कर अपनी पुत्री का विवाह अजातशत्रु के साथ करना पड़ा और इसके साथ ही उसने काशी का प्रांत अजातशत्रु को दहेज के रूप में दे दिया।

 

वैशाली से युद्ध:- अजातशत्रु का दूसरा युद्ध वैशाली की लिच्छिवीयों के साथ हुआ। अजातशत्रु के समय में लिच्छिवी एक बहुत ही शक्तिशाली गणराज्य था और जिसे हराना बहुत मुश्किल था।

परंतु मगध के महामंत्री वर्षकार ने कूटनीति से लिच्छिवी संघ में फूट डाल दी और जब अजातशत्रु ने लिच्छवियों पर आक्रमण किया तो वे एकजुट ना हो सके और अजातशत्रु ने वैशाली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद अजातशत्रु ने छोटे छोटे राज्यों को जीतकर मगध मे मिल लिया।

अजातशत्रु ने पहली बार युद्ध में रथमासुल तथा महाशिलाकंटक  नामक हथियारों का प्रयोग किया। ये हथियार आज के समय में बहुत अधिक मुल्यवान समझे जाते है तथा भारतीय इतिहास में इनका बहुत महत्व है।

अजातशत्रु के शासन काल मे 483 ईसा पूर्व में पहली बौद्ध संगीति हुई। बुद्ध के अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण कराया गया। स्तूप में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और संघ के नियमों का वर्णन किया गया है।

 

मृत्यु

पुराणों के अनुसार अजातशत्रु  ने 25 वर्ष तक मगध पर शासन किया था। अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदयन ने 460 ईसा पूर्व में कर दी और स्वयं गद्दी पर बैठ गया।

 

उदयन (Udayan)

अपने पिता की हत्या करने के बाद 460 ईसा पूर्व में वह  मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। वह बहुत ही महत्वकांक्षी राजा था। उसे उदायीभद्र के नाम से भी जाना जाता है। उसने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया।  उसने भी कई छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर मगध में मिलाया और मगध को एक विशाल राजवंश बनाया।

 

मृत्यु

पुराणों के अनुसार उदयन ने 33 वर्ष तक शासन किया परंतु बौद्ध ग्रंथ के अनुसार उसने 16 वर्ष तक शासन किया। उसकी मृत्यु 440 ईसा पूर्व मानी जाती है।

उदयन की मृत्यु के बाद कोई भी उतराधिकारी ऐसा नहीं था जो इतने बड़े सम्राज्य को चला पाता अत: इस वंश का अंत 412 ईसा पूर्व तक हो गया। इस प्रकार पितृहन्ता राजवंश का अंत हो गया।

 

 

तो दोस्तो आज हमने हर्यक वंश के बारे मे सब कुछ जाना है। अब आगे हम अन्य दो वंश शिशुनाग और नंद वंश के बारे में जानेंगे। तब तक आप अपनी तैयारी करते रहे और हम आपके लिए ऐसे ही study से related articles लाते रहेंगे।

 

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